Friday 29 April 2011

सड़क पर मौत



डॉ. कन्हैया त्रिपाठी

विश्व में प्रत्येक वर्ष सड़क पर विश्व के 50 लाख लोग अपना दम तोड़ देते हैं, यह आंकड़ा है डब्ल्यू.एच.ओ. का। इस आंकड़े में यह कहा गया है कि हमारे लोग हमसे सड़क पर छिन जाते हैं और हम हाथ मल कर रह जाते हैं। यह आश्चर्यजनक आंकड़ा हमें एक पल के लिए मौन कर देता है।
सड़क सुरक्षा पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि लगभग पांच करोड़ लोग प्रति वर्ष घायल होते हैं। यह आंकड़े 25 से 65 वर्ष के लोगों के हैं जो इसमें आहत हो रहे हैं या घायल हो रहे हैं। यह घायल जो लोग हो रहे हैं वह अपने लिए और अपने देश के लिए महत्तवपूर्ण हैं। यह वे लोग हैं, जिनका जीवन अवरुध्द हो जाता है और अपनी मुरादें पूरी नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों के जीवन का कोई मोल है या नहीं, यह तो प्रत्तयेक नागरिक पूछ सकता है। दूसरी बात इस आयु वर्ग के लोग युवा हैं और दुनिया को बदलने का माद्दा रखते हैं।
 फिलहाल हम एक नज़र उस ओर भी दौड़ा लें जो भारत देश कर रहा है। विगत् दिनों विज्ञान भवन में इस पर एक कार्यशाला हुई और उसमें भारत के जिम्मेवार पदों पर बैठे लोगों ने चिंता जाहिर की और कुछ रण्ानीतियां बनायी। इसमें केन्द्रीय सचिव का कहना था कि 2011 से 2020 के लिए सड़क सुरक्षा कार्य योजना विकसित करने के लिए घातक और गैर घातक सड़क दुर्घटनाओं से शरीर पर जो नुकसान होता है, उससे आर्थिक विकास में बाधा पहुँचती है।
इस दस वर्षीय डब्ल्यूएचओ की पहल पर अन्तर-मंत्रालयी बैठक में ऐसी योजना तैयार की जा रही है जिससे सड़क दुर्घटना को रोका जा सके। इस बैठक में सड़क परिवहन, गृह मंत्रालय..... के अलावा भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग के प्रतिनिधि के अतिरिक्त डब्ल्यूएचओ, आईआईटी, केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान एवं भारतीय आटोमोबाइल निर्माण के विशेषज्ञ शामिल हुए।
महानिदेशक स्वास्थ्य का कहना था कि आपातकालीन ट्रामा केयर सुविधा में उन्नयन के लिए एक योजना का कार्यान्वयन सरकार कर रही है। जिसका उद्देश्य सड़क हादसे में घायल लोगों को शीघ्र चिकित्सा की पहुँच में लाना है। इस योजना के तहत 732.75 करोड़ रुपये का प्रावधान है। जिसके तहत 140 आपातकालीन ट्रामा केयर केन्द्र का विकास किया जाएगा। यह 5846 किमी को कबर करेगा और इसका कुल नेटवर्क 7716 किमी है जो दिल्ली, कोलकाता, चुन्नई, मुम्बई और दिल्ली को सम्पर्क साधते हुए कश्मीर से कन्याकुमारी और सिल्वर से पोरबन्दर को जोड़ती है। 11 वीं पंचवर्षीय योजना में तो 15 राज्यों में 113 ट्रामा सेण्टर बनाए गए लेकिन सरकार का लक्ष्य है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना में 160 ट्रामा सेण्टर को और बनाया जाए।
यह सरकारें भी क्या रणनीति बनातीं हैं। ट्रामा सेण्टर से सड़क दुर्घटना को रोकने की कोशिश नहीं है, यह उन हादसे में मौत से जूझते हुए लोगों को गहन चिकित्सा कक्ष तक ले जाने की कोशिश है। सबसे पहले तो इस बात पर जोर देना चाहिए कि हमारे मानव संसाधन किस प्रकार विकसित हों कि यह हादसे न हों, लेकिन नहीं उसके बाद की चींजें सोची जा रही है। वास्तव में इससे यह प्रतीत होता है कि सरकार दूरदर्शी है। एक तरह से देखा जाए तो उसकी यह रणनीति मुझे भी पसंद है लेकिन सरकार को सड़क पर मौत हो ही नहीं इस पर ज्यादा चिंतित दिखाई देनी चाहिए।
लेकिन नहीं, हो कुछ और रहा है। सरकार के आंकड़े और डब्ल्यूएचओ की पहल की तारीफ की जानी चाहिए लेकिन इसके सही विकल्प की पहल प्राथमिक तौर पर यह होनी चाहिए कि सड़क के नियम जो बनाए गए हैं, वही कम से कम पालन किए जाएं। सड़क को हम किस प्रकार विकसित करें कि ये मौत का अड्डा न बन सकें, यह जरूरी है। इसके लिए व्यापक रणनीति और दीर्घकालिक योजना पर विशेषज्ञों के कार्य की जरूरत है। सरकार इस पर क्या कर रही है, यह सबको पता है।
सड़क ट्रामा केन्द्र के लिए उन एनजीओ की मदद ली जाती है जो अपने प्रोजेक्ट को अच्छे कमीशन के साथ पास कराते हैं। ऐसे एनजीओ बड़ी मुश्किल से समय पर पहुँचते हैं, तो इन एनजीओ से क्या अपेक्षा की जा सकती है। राज्य का ट्रासपोर्ट कमिश्नर उन्हीं लोगों की फाइल केन्द्र सरकार को पहुंचाता है जिनके दलाल उसे ठीक से पैसे पहुंचाते हैं। ऐसे में हमारी सड़क सुरक्षा पर हो रहा मंथन क्या नया कर सकेगा, यह कहना मुश्िकिल है। सड़क पर मौत भी अब चिंता पैदा कर रही है, यह मानवीय करुणा का एक प्रकार से उदय है। लेकिन भ्रष्टाचार के अस्त हुए बगैर न तो हम सड़क को सुविधाजनक बना सकते हैं और न ही मनुष्य के लिए सहायक। इस प्रकार सड़क पर होती मौत की फिक्र और बैठकें महज औपचारिकता के अतिरिक्त कुछ और नहीं लगती। आमतौर पर देखा जाए तो देश का नागरिक अपने राज्य से पूर्ण सुरक्षा चाहता है। राइट टू लाईफ और राइट टू सिक्योरिटी के लिए राज्य प्रतिबध्द है लेकिन सड़क पर मरते लोगों के प्रति उसकी क्या जिम्मेवारी है, इससे वह बेखबर है। यह किसी भी राज्य के लिए चुनौतीपूर्ण है कि वह सड़क की मौत को रोक सके लेकिन उस पर नियंत्रण तो वह कर ही सकता है।
इसका जो जोरदार पहलू है जागरूकता उसमें सरकार पीछे रह गयी है। इसे कैसे उन्नत बनाया जा सकता है, यह गौर तलब है। जागरूकता के साथ जरूर हम सफल हो सकते हैं। लेकिन इसमें भी एनजीओ सेक्टर को शामिल करने पर कोई आशा की किरण फैलेगी, यह असंभव है। फिलहाल बगैर किसी प्रतिक्रिया के नागरिक समाज के लोग मौन इन मौतों को देखने के लिए विवश हैं, जो ठीक नहीं है।

डॉ. कन्हैया त्रिपाठी, महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, गांधी हिल्स, वर्धा-442001 (महा.)
मो. 09765083470 bZ-esy% kanhyatripathi@yahoo.co.in
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यह कैसी लोकपाल समिति?


डॉ. कन्हैया त्रिपाठी
लोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे ने आमरण अनशन किया। वह भ्रष्टाचार को मिटाना चाहते हैं। उनको पहले वैयक्तिक साधुवाद! अन्ना हजारे दिल से बहुत ही अच्छे हैं। वह किसी तरह की राजनीति से प्ररित हैं, ऐसा कोई आज की तारीख में नहीं कह सकता है। अन्ना हजारे के साथ बैठे कुछ लोगों पर जरूर कुछ लोगों का संदेह है। वह साथ के लोग कहीं न कहीं अपनी राजनीति, अपना कद इसी गंगा में नहाकर ऊँचा कर लेना चाहते हैं। कुछ लोगों की बात बन भी गयी। कफद लोग फोटो खिंचवा लिए अपने आने वाली नश्लों को बताने के लिए कि मैं भी अन्ना का सिपाही, उनकी दाहिनी बांह वगैरह, वगैरह था। खैर, यह कोई बड़ी बात नहीं है। यह तो प्रत्येक आन्दोलन में कुछ लोगों द्वारा किया जाता है।
मेरा कुछ प्रश्न है जिसे आज का भारत पूछ सकता है। क्योंकि जिन लोकपाल विधेयक के लिए यह आन्दोलन किया गया, उसका मुख्य उददेश्य है-भ्रष्टाचार पर काबू। सरकार चाहती थी या नहीं चाहती थी, यह हम नहीं तय कर सकते। सरकार के ही तरफ से संसद सदन शुरू होने से पहले यह बात आयी थी  िकइस बजट सत्र में लोकपाल विधेयक भी आएगा जो पिछले कुछ दिनों से लम्बित है। फिलहाल वह नहीं पेश किया जा सका और सरकार को अन्तत: घेरकर उसे लाने के लिए अन्ना हजारे आगे आए।
लोकपाल बिल के लिए अब एक समिति बना दी गयी है जिसके दस सदस्य हैं। इनके बीच रोज कुछ कटाक्ष किए जा रहे हैं। कोई किसी से पद से हटने के लिए कह रहा है तो कोई यह कह रहा है कि इससे कोई भ्रष्टाचार नहीं रुकने वाला है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस समिति के जो दस सदस्य हैं, उनका नाम इस प्रकार है-प्रणब मुखर्जी, कपिल सिब्बल, वीरप्पा मोइली, पी. चिदम्बरम्, सलमान खुर्शीद, यह सभी सरकार की ओर से प्रतिनिधि हैं। तथाकथित समाज के प्रतिनिधि हैं-अण्णा हजारे, अरविन्द केजरीवाल, शांति भूषण और संतोष हेगड़े।
जी, दस सदस्यीय समिति के यह नाम हैं जो भारत के एक अरब इक्कीस करोड़ जनता का प्रतिनिधित्व करते हुए हमारे लोकपाल बिल को लाएंगे। एक लोकायुक्त बैठाएंगे और इनका मानना है कि इससे भ्रष्टाचार खत्म होगा। हम सरकार को घेर सकेंगे। इसमें से जो सरकार के प्रतिनिधि हैं वह इस पर सहमत नहीं हैं और फिर भी सरकार की ओर से कार्य करेंगे।
इस लोकपाल बिल के जो सदस्य नामित हुए हैं, वह लोकतांत्रिक हैं। वह लोकतंत्र जानते हैं। वह लोतंत्र के पैरोकार हैं। वह देश के भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहते हैं। लेकिन उनसे एक प्रश्न है मेरा भारत की जनता की ओर से कि क्या जो समिति बनी है उसमें कोई महिला सदस्य है? क्या कोई नव युवक है? क्या कोई आदिवासी है? नेता जी लोग हैं और रिटायर्ड स्वघोषित समाजसेवी लोग हैं। जब आधी आबादी का प्रतिनिधत्व करने वाली महिला सदस्य नहीं हैं तो कैसा लोकतंत्र? जब भारत की जनता को यह पता है कि भारत नव जवानों के बल पर आगे बढ़ रहा है। यहां की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी नव युवकों की आबादी है, वह नहीं हैं तो कैसा लोकतंत्र? अब देश के कुछ 60 पार कर चुके लोग लोकपाल बिल और लोकायुक्त बैठाएंगे तब इस देश का भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा।
जब यह अनशन चल रहा था तभी कोई फेसबुक पर लिखा था कि यह हाई क्लास समिति बनाने और उसमें जगह पाने की कोशिश हो रही है, बाकी कुछ नहीं। वह लगभग शत-प्रतिशत सच निकला। क्यों नहीं अन्ना हजारे बोले कि नहीं, इसमें कम से कम दो तिहाई महिला सदस्य बनाए जाएंगे। मैं खुद इस समिति में नहीं रहूँगा। सरकार के लोग रहेंगे लेकिन उनकी छवि विल्कुल साफ सुथरी होगी? क्यों उनक ेअब सम्पत्तिा के घोषणा करने के कलए सिफारिश की जा रही है? और सबसे बड़ा प्रश्न यह कि इसमें नवयुवक क्यों शामिल नहीं हैं?
यह ऐसे सवाल हैं जो किसी जनान्दोलन की साख पर प्रश्नचिन्ह खड़े करते हैं। अन्ना हजारे व्यक्तिगतरूप् से बहुत ईमानदार हैं लेकिन उनका 70 के बाद वाला दिमाग क्लिक थोड़ा हल्का कर रहा है। उनके दाहिने-बाएं जो कहेंगे वह उसे मीडिया में जारी कर देंगे। मुझे तो शक है कि कोई देश का अच्छा, ईमानदार व्यक्ति लोकायुक्त बन सकेगा।
भारत के लिए यह शर्मनाक है  िकवह महिलाओं को दरकिनार करके कोई रणनीति बनाता है। कोई मसौदा पारित करता है। इससे वह न तो एक लोकतांत्रिक भारत की छवि प्रस्तुत करता है और न ही उसकी अपनी छवि मजबूत हो पाती है। भारत के जनान्दोलनकर्ता भी इससे निजात दिलाने में कामयाब नहीं हो सके। मौजूदा समिति इस बात की एक सशक्त दलील है। भारत का युवा और आधी आबादी से वंचित समित प्रतिनिधित्व से गठित लोकपाल बिल और लोकायुक्त से भारत का भ्रष्टाचार मिटेगा, यह वास्तव में आज संदेहपूर्ण है। फिलहाल, जैसा कि प्राय: होता है। औपचारिक प्रयास तेज हो चुके हैं। आपसी सौहार्द से यदि कोई विकल्प अगर सकारात्मक आएगा तो खुशी होगी भारत की जनता।


 पता: महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, गांधी हिल्स, वर्धा-442001 (महा.)।
ईमेल: hindswaraj2009@gmail.com
Residential Address: Maheshpur, Azamgarh-276137(UP). Mo. 09765083470