Tuesday 7 June 2011

Istrivad ko peechhe chhodatin Mother Teresa

óhokn dks ihNs NksM+rÈ enj Vsjslk
MkW- dUgS;k f=ikBh 

मनुष्य का दायरा तब बढाता है जब हमारे बीच ऐसी सख्शियत मौजूद हो जाती हैं जो किसी भी तरह हमारे लिए प्रेरणास्रोत हों. मदर टेरेसा उनमें से एक थीं. वह किसी समाज से यह नहीं कहतीं कि स्त्रियों को अधिकार दो. वह स्वयं एक ऐसी मिसाल की तरह पेश होती हैं जिससे लोग उनके प्रेरणा पर अपनी राह बनाएँ. आज का स्त्रीवादी प्रश्न जो हर गली-चौराहे पर मुखरित हुआ है उसके लिए भी मदर एक ऐसी मिसाल हैं जो किसी पितृसत्तामक समाज से यह शिकवा नहीं करतीं कि वे हमें आगे बढ़ने से रोक रहे हैं.
सेवा भावना
मदर टेरेसा जी का 27 अगस्त 1910 को मैकेडोनिया गणराज्य की राजधानी स्कोप्ज में एक कृषक दंपत्ति के  घर जन्म हुआ था। क्या आप जानते हैं कि मदर टेरेसा का असली नाम 'अगनेस गोंजे बोयाजिजू' था? बचपन में ही अगनेस ने अपने पिता को खो दिया। बाद में उनका लालन-पालन उनकी माता ने किया।  महज एक जीवन नहीं मिशन मदर टेरेसा 18 वर्ष की छोटी उम्र में ही समाज सेवा में जुटीं इसको अपना ध्येय बनाते हुए मिस्टरस ऑफ लॉरेंटो मिशन से स्वयं को जोड़ीं । वह सन् 1928 में रोमन कैथोलिक नन के रूप में कार्य शुरू कीं। भारत में वह बहुत दूर से आई थीं, मैसिडोनिया के स्कोप्जे शहर से अलबेनियाई मूल की अट्ठारह साल की एक नन एगनस, यूं तो लॉरेटो कॉन्वेंट में पढ़ाने के लिए भारत पहुंची थीं लेकिन बीस साल बाद उसे समझ में आया कि उसकी दुनिया तो कहीं और बसती है. सड़कों पर, झुग्गियों में, गरीबों में, और लाचारों में
 ईसाइयों के सबसे बड़े चर्च वैटिकन ने उसे उसकी दुनिया दे दी. यह पहली और इकलौती मिसाल हैं, जब वैटिकन ने किसी नन को बंद कमरों से आज़ादी और बाहर रहने की इजाजत दी, उसे अपना अलग ऑर्डर शुरू करने की अनुमति दी । कहते हैं जहां चाह है वहीँ राह है, यह कहावत इस महिला ने चरितार्थ कियादार्जिलिंग से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मदर टेरेसा ने कलकत्ता का रुख किया।
24 मई, 1931 को कलकत्ता में मदर टेरेसा ने  'टेरेसा' के रूप में अपनी एक पहचान बनाईं। इसी के साथ ही उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी त्यागने का फैसला किया। मदर टेरेसा ने कलकत्ता के लॉरेंटो कान्वेंट स्कूल में एक शिक्षक के रूप में बच्चों को शिक्षित करने का कार्य भी प्रारम्भ किया। मदर टेरेसा की जन्मशती पर डॉयचे ऑफ वेले-जर्मन  रेडियो से खास बातचीत में नवीन चावला ने कहा, “बीस साल तक लॉरेटो कॉन्वेंट में पढ़ाने के बाद उस महिला को समझ में आता है कि उसकी जिंदगी तो सड़कों और झुग्गियों के लिए लिखी है। यह पहला और इकलौता मामला रहा, जिसमें वेटिकन ने एक नन को नन रहते हुए सड़कों पर जाने की इजाजत दी। कोई साथी नहीं, कोई मददगार नहीं, कोई पैसा नहीं। उन्होंने अपने कार्य को पूरा किया। सिर्फ अकेले। उनकी जिन्दगी वास्तव में एक रहस्य थीA
 सन् 1949 में मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय व अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की, जिसे 7 अक्टूबर 1950 में रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। इतना ही नहीं, मदर टेरेसा ने 'निर्मल हृदय' और 'निर्मला शिशु भवन' के नाम से आश्रम खोले। जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं। जिसे समाज ने बाहर निकाल दिया हो, ऐसे लोगों पर इस महिला ने अपनी ममता व प्रेम लुटाकर सेवा भावना का परिचय दिया। मदर टेरेसा ऐसी रोशनी  का नाम है.
Dr. Kanhaiya Tripathi


कलकत्ता जीवन नहीं जन्नत देने लगा
पीड़ित मानवता के लिए समर्पित मदर टेरेसा ने स्वयं सेवी संस्थाओं का जाल बिछा दिया । 'मिशनरीज ऑफ चेरिटी' नामक संस्थाओं के केन्द्र द्वारा ये संचालित होती हैं । नि:स्वार्थ भाव से मानव सेवा के लिए समर्पित इसके माध्यम से सेवा कार्य में संलग्न हैं 'मिशनरी ब्रादर्स ऑप चेरिटी' नाम से पुरुषों के लिए भी एक संगठन है। एक और संस्था है 'मदर टेरेसा के सहयोगी कार्यकर्ता' इसमें विविध धर्म, हर क्षेत्र और हर प्रकार की सहायता के लिए द्वार खुले हुए हैं।
कलकत्ता के लोअर सरक्युलर मार्ग पर बेसहारा बीमार बच्चों के लिए 'निमर्ल शिशु भवन' नामक संस्था संचालित है! इसके माध्यम से देश भर की इसकी शाखाओं में तीन हजार से भी अधिक बच्चे पल रहे हैं। जिन्हें उनके माता-पिता ने निर्मम होकर मरने के लिए बेकार मान कर फेंक दिया था, वे मदर टेरेसा से प्यार पाए । उन्हें सुयोग्य नागरिक बनने की शिक्षा-दीक्षा के लिए इन केन्द्रों में पर्याप्त प्रबंध सेंट मदर टेरेसा ने किया ।
कलकत्ता के काली मंदिर के पास ही एक धर्मशाला में 'निर्मल ह्रदय' स्थापित है। मृत्यु की प्रतीक्षा करते लोगों के लिए इसमें सेवा-सुश्रुषा की व्यवस्था है। इस तरह के ३२ से अधिक केन्द्र देश में संचालित हैं, जिनमें २००० से भी अधिक बेसहारा मरणासन्न रोगियों को वात्सल्य् भरी मानसिक शांति और सुश्रुषा उपलब्घ कराई जाती है।
कलकत्त्ते के पास ही शांतिनगर में कुछ रोगियों के लिए ३४ एकड़ भूमि में इलाज के लिए पुनर्वास और रोजगार के लिए साधन जुटाये है। इस तरह के ६७ केन्द्रों के द्वारा ४४, ००० से भी अधिक कुष्ठियों की चिकित्सा तथा रोजगार की व्यवस्था है।
स्कूलों, डिस्पेन्सरियों में, मातृ एवं शिश गृहों, रिलीफ सेन्टर  आदि के माध्यम से हजारों बच्चें, बीमारों, अनाथों, विकलांगों आदि को सहायता दी जाती है। इस प्रकार 'समाज-सेवा, को नहीं, मानव-सेवा' का मूल केन्द्र मानकर 'मदर टेरेसा' ने मूक मानवता की बहमूल्य सेवा की है। उनकी सेवा संस्थाओं का जाल तेजी से फैला, यह पीड़ित मानवता के लिए बहुत ही शुभ है। जो कलकता कभी लोगों के लिए मरण-स्थल था वही जन्नत बन गया यह कोई मदर ही कर सकती थीं इसमे कोई दो  मत नहीं कि मदर टेरेसा इस कार्य को सम्पन्न की हैं.
'सादा जीवन उच्च विचार' की मूर्ति  मदर टेरेसा  का जीवन वास्तव में  बहुत ही सादा था ।   वे बिना थके लोगों की सेवा करती थीं, नवीन चावला उन्हें बार-बार याद करते हुए कहते हैं, 'जब मैंने उनसे पूछा कि आप एक कुष्ठ रोगी को कैसे साफ करती हैं, तो उन्होंने मुझे समझाया कि ये मरीज नहीं है, मेरे लिए ये मेरा भगवान है। ये मेरे लिए जीजस क्राइस्ट है। जो बच्चा सड़क पर मिलता है, वह भी भगवान है, जो लंदन के वाटरलू ब्रिज के नीचे रहते हैं, वे भी भगवान हैं। जो कोई उनके साथ बात भी नहीं करता और मैं उनको खाना देती हूँ। तो मेरे लिए ये सब लोग जीसस क्राइस्ट हैं। ये सब मेरे भगवान हैं। शायद यही बात उन्हें गरीबों और असहायों की मदद को प्रेरित करती थी।' करुणा की इससे बड़ी मिसाल क्या हो सकती है.
दो नवम्बर, २००७ को जब भारतीय प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील कोलकाता पहुंचीं तो वह भाव विहवल हो गयीं. उन्होंने उस अहिंसा, करुणा और सेवा की प्रतिमूरी के बाते में कहा १९८४ में मदर टेरेसा की उपस्थिति में मदर टेरेसा महिला विश्वविद्यालय एक महान हस्ती, असाधारण मानवतावादी और नोबल पुरस्कार विजेता के नाम पर स्थापित हुआ था, यह महिलाओं को विशेषकर शिक्षा द्वारा गरीब और वंचित महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए पूर्णतः समर्पित असाधारण संस्था है. यह एक राष्ट्रपति द्वारा कहा गया, यह शब्द हमें बताते हैं कि वह कितनी महान महिला थीं. मदर टेरेसा को ही याद करते हुए महामहिम प्रतिभा देवीसिंह पाटील जी ने यह कहा कि
यदि सभी बृक्ष मिलकर एक बृक्ष बन जाएँ तो वह कितना विशाल बृक्ष होगा,
यदि सभी नदिया मिल कर एक नदी बन जाएँ तो वह कितनी विशाल नदी होगी।
यदि विश्व की सभी महिलाओं का स्वर एक हो जाए तो विश्व में शान्ति, समृधि और खुशहाली लाने के लिए, वह कितना शक्तिशाली स्वर बन जाएगा।
हमें महामहिम के इन शब्दों को मदर टेरेसा के सेवा, प्रेम, करुणा और सद्भावनारूपी स्वर के रूप में लेना चाहिए और निःसंदेह उस महान महिला के कदमों पर दो कदम चलकर कुछ करना चाहिए। मदर टेरेसा 5 सितम्बर, १९९७ को हमसे रुखसत हो गयीं लेकिन उनके खींचे लकीर आज हमें सेवाभावना के लिए खींच रहे हैं. भारत की महिलायें जो महिला प्रश्न की राजनीति कर रहीं हैं उन्हें खास तौर पर मदर सीख दे रहीं हैं कि कुछ स्वयं करके बुलंद हो जाओ किसी मर्द से माँगने पर भीख से अच्छा है कि मिसाल बनो.
मदर टेरेसा के कर्त्तव्य भावना और सेवा भावना से यह भी सीखने को मिलता है कि मनुष्य जाति सेवा से जो कतराती है उसको तो इस भावना को निकाल देना चाहिए कि वह अगर किसी अपाहिज को सड़क पार करा देगा तो उसका समय नष्ट हो जाएगा. हमारे हिन्दुस्तान में सेवा भावना खत्म हो रही है इसमें दो मत  नहीं, वह कैसे फिर अपना अस्तित्वा पाएगी यह महत्वपूर्ण प्रश्न है. भारत एक अरब, इक्कीस करोर आबादी वाला देश है. आज इसमे जितनी तेजी से आबादी का विकास हो रहा है उतनी तेजी से सेवा भावना का क्षरण भी जारी है , यह न हिन्दुस्तानी जनता के हित में है न ही मदर टेरेसा के सेवाभाव का कोई प्रभाव इस जड़ता को मदर त्यागने की हमसे अपेक्षा कर रहीं हैं, अब देखना यह है कि इसमे अगुआई कौन करता है.
वह आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कीर्ति और उनका कार्य हमारी प्रेरणा का आधार है. महिलायें मदर के रस्ते पर चलकर पुरुषों को आगे ला सकतीं हैं वह स्वयं कब आगे बढकर पुरुषों को आगे लाती हैं इस वक्त के इंतज़ार में सभी हैं.
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा-४४२००१ (महाराष्ट्र)
मो. 09765083470, Email: hindswaraj2009@gmail.com