Tuesday 22 March 2011

पानी के लिए शोर


डॉ. कन्हैया त्रिपाठी -
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने जल दिवस के एक संदेश में कहा है कि विश्व को पानी के लिए संघर्ष करने का यह चुनौतीपूर्ण समय है। जल के बिना न तो हमारी प्रतिष्ठा बनती है और न ही गरीबी से हम छुटकारा पा सकते हैं। फिर भी शुध्द पानी तक पहुँच और सैनिटेशन यानी साफ-सफाई सम्बन्धी सहस्राब्दि विकास लक्ष्य तक पहुँचने में बहुतेरे देश अभी पीछे हैं। बान की मून की यह विश्व व्यापी चिंता जरूर सोचने के लिए बाध्य करती है।
फिलहाल पानी बचाने की मुहिम भारत में तेज हो रही है। भारत में अब लगभग ण्क शोर हरेक राज्य से आने लगा है कि पानी को कैसे हम संरक्षित करें। शहरीकरण जब से बढ़ा है और झुग्गी-झोपड़ियां अपने संख्या को बढाने लगी हैं तो यह चिंता और बढ़ गयी है। पेयजल केवल चुंकि हमारा संकट नहीं है। इसे किसी तरह तो पूरा किया जाएगा लेकिन यह जो कचरे में ईजाफा हो रहा है वह जरूर हमारे सरकार के लिए और शहरी आबादी के लिए चिंताजनक है। विश्व में लगभग बारह करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास सिंगल नल नहीं है। साफ-सफाई से वंचित लोग लगभग पचास लाख लोग हैं। अब सोचिए इनके भविष्य, जीवनचर्या का क्या होगा?
जल प्रबंधन की चुनौती झेलते हमारे शहर और शहरी आबादी को पानी के अभाव में थोक की बीमारियां जो मिलने वाली है वह अलग से। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों का उच्चायोग पानी को सबके मानवाधिकार के रूप में बताया है। विश्व में साढ़े छ: अरब की आबादी के मानवाधिकार के रूप् में चिन्हित पानी की दशा यह है  िकवह खुद सबके मानवाधिकार का हिस्सा नहीं बन सकता।
श्लोगन, नारे और प्रसंविदाएं इसीलिए हमारे जीवन का अंग नहीं बन पाती हैं क्योंकि हम जिस उत्सुकता और गर्मजोशी से इसे पास करते हैं उतने ही जागरूकता से लागू करने में हम पीछे हो जाते हैं। दुनिया के राज्य ऐसे में एक खोखले वादे और घोषणाओं के एक एलीमेंट के रूप में देखे जाने लगते हैं
भारत में खुद पानी को लेकर जो बहस है वह कागजों पर ज्यादा है। कुछेक राज्य अगर जागरूक होकर अपने मिशन में भी जुट गए हों तो लगभग सवा अरब वाले भारतीय आबादी का कल्याण कैसे हो सकेगा। जमुना का पानी और गंगा पानी अब पवित्र है तो उन सहज लोगों के बीच जो अभी गंगा मैया और यमुना माता के रूप् में उसे जानते हैं। वे इतने सहज हैं कि उन्हें यह नहीं पता है कि हमारी गंगा और यमुना को कितने कचरों से दूषित किया जा चुका है। दिल्ली के लोग जानते हैं यमुना केबारे में कुछ कानपुर के लोग गंगा के बारे में जानते हैं। वह लोग किसी मंगल पर्व पर स्नान नहीं करना चाहते। उनके हिसाब स ेअब गंबा न तो नहाने लायक रह गयी और नही पवित्र करने लायक।
भारत सरकार एक राज्य के रूप में पानी जैसे मानवाधिकार को कैसे आम मनुष्य का हिस्सा बना सकेगी, यह तो एक चुनौती है। यह चुनौती इसलिए है क्योंकि हमारी सरकार के पास न तो नीति है और न ही नौकरशाह जो संरक्षण के लिए नीतियां बनी हैं, उसे जल्दी से लागू करना चाहते हैं। इस प्रकार एक संजाल में फंसी हमारी जल नीति हमारे जीवन से जो जुड़ी है वह इस पाले, उस पाले खेल के तरह खेली जा रही है।
पारम्परिकरूप से जल संरक्षण की बात भारत में बहुत पुरानी है। लेकिन जब से पानी सर्व सुलभ हुआ और लोग अपने निजी जीवन में उपभेगवादी बनने लगे लोगों का रुझान अपनी पारंपरिकता से विल्कुल अलग हो गया है। किसान भी अब जिस तरह से पहले अपने खेत-खलिहान और पांपरिकता को जीता था उससे अलग हो गया। ऐसे में जल संरक्षण एक वास्तव में चुनौती का सबब बन चुका है। शहर सोच रहा है गांव जल बचाएंगे। गांव सोच रहा है कि शहर स ेजल बचाया जाएगा लेकिन शहर प्लास्टिक ऑव दी वाटर का शिकार हो गया है। गांवों के लिए निगमीकरण के खिलाड़ी आस लगाए बैठे हैं कि कभी ऐसा वक्त जरूर आएगा जब निजीकरण के नाम पर हमें गांव में पानी बेचने के लिए दे दिया जाएगा।
इस प्रकार पानी के लिए बर्चुअल शोर एक भयानक शोर में तब्दील होने जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकारों के उच्चायोग और दुनिया के राज्य इस फिराक में हैं कि कनवेंशन पास करके हमज ल क्रांति ला देंगे तो यह कोरी कल्पना है। रियो-डि-जनेरियों में 2012 का सम्मेलन पानी को केन्द्र में रखकर किया जाना है। इसके लिए तैयारियां जोरो स ेचल रही है लेकिन पानी क्या वास्तव में बचाया जाएगा, यह कहना मुश्किल है। यूएन. वाटर पैनल जहां टिकाऊ जल प्रविधि के लिए कार्य कर रहा है वहीं भारत सरकार के पास ऐसी एक भी टिकाऊ जल नीति के लिए कोई कमेटी नहीं बनायी गयी है। गरीबी, असमानता और रोजगार को दूर करने के लिए ऐसे में व्यापक योजनाओं को क्रियान्वयन करने की मंसा बना रही सरकार केवल पानी में सिमट जाएगी। सन् 2020 जिस भारत को हम विकसित राष्ट्र की श्रेणी में देखना चाहते हैं वह भी एक संकल्प के सिवा और कुछ न रह जाएगा। राष्ट्रीय जल अकादमी से जरूर कुछ आशाएं बढ़ी हैं जिससे भारत को अकादमिक पैमाने पर ऐसे जल विशेषज्ञ मिलेंगे और भारत अपनी नीतियां लागू कर सकेगा लेकिन आज जो आवश्यकता है उसे भी हमें देखनी है। भारत की जल नीति कैसे अपने वास्तविक जल संरक्षण के लिए काम करके भारत को चुनौतियों से मुकाबला करने में सक्षम बना सके, इसे आज आपूर्ति करनी है। शहरी जल संकट को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी है कि हम शहरी जल नीति तैयार करके एक स्वस्थ भारत को जनें, यह आज की मांग है। भारत का जल भविष्य नही ंतो हमसे आज जो प्रश्न पूछ रहा है। वह आने वाली पीढ़ियों के जीवन को न देख सकेगा। क्योंकि जब जीवन ही न शेष होगा तो हम और हमारी पीढ़ियों को पूछने के लिए क्या बचेगा?

 पता: महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, गांधी हिल्स, वर्धा-442001 (महा.)।
ईमेल: hindswaraj2009@gmail.com
Residential Address: Maheshpur, Azamgarh-276137(UP). Mo. 09765083470




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